नड्डा चुनावी रणनीति पर चर्चा के लिए जयपुर पहुंचे

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शनिवार को जयपुर पहुंचे, जहां वह पार्टी संगठन की कई बैठकों में हिस्सा लेंगे।सांगानेर हवाई अड्डे से नड्डा सीधे मोती डूंगरी स्थित गणेश मंदिर गए और पूजा-अर्चना की। इसके बाद वह पार्टी के प्रदेश मुख्यालय रवाना हुए। इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी सहित पार्टी के अन्य नेता उनके साथ मौजूद थे।

एआई से चिंतित दुनिया!

घूम-फिर कर सवाल यही आएगा कि क्या ऐसे कानूनों से वह चिंता दूर होगी, जिसके लिए ये सारी कवायद की जा रही है? अक्सर किसी नई तकनीक और उसके प्रभाव को रोकने में कानून अक्षम साबित होते हैं।

डेटा सुरक्षा में बड़ी सेंध

जिस युग में डेटा को सोना कहा जाता है, डेटा सुरक्षा के ऐसे हाल के साथ कोई भी देश सुरक्षित रहने और विकास मार्ग पर चलने को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। सरकार को ताजा घटना का पूरा सच देश को बताना चाहिए।

टूटते राजमार्ग और पुल-पुलिया, टपकता हवाई अड्डा और सेंट्रल विस्टा…!

भोपाल। कहते हैं की नीव मजबूत हो तब इमारत भी मजबूत बनती है, लगता है कि सांप्रदायिक और धार्मिक विभाजन पर चुनाव जीतने से बनी सरकार की इमारत धसकने लगी है। मोदी जी के कुछ फैसले बानगी के तौर पर देखे जा सकते हैं। मौजूदा संसद भवन को संग्रहालय बनाने के लिए अरबों रुपये की लागत से बना विवादित सेंट्रल विस्टा में संसद का वर्षा ऋतु का अधिवेशन की ज़ोर –शोर की घोषणा, आखिरकार उस नव निर्मित इमारत (स्मारक कहना ज्यादा उचित होगा) में नहीं हो सकी ! उसी भांति जैसे कालाधन खत्म करने की घोषणा के साथ दो हजार रुपये के नोट बंद किए गये थे अथवा मंहगाई पर रोक लगाने की तरकीब भी बताई गयी थी। पर हुआ क्या टमाटर और अदरख तथा हरी मिर्च जैसी सब्जियां ही सैकड़ा पार करके एक किलो में मिल रही हैं। वैसे अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में नव निर्मित हवाई अड्डे का नामकरण संघ और बीजेपी के युग पुरुष सावरकर के नाम पर हुआ परंतु द्वीप की पहली ही बरसात में ना केवल वहां पानी भर गया वरन उसमे छत पर सजावट के लिए लगे फाल्स सीलिंग भी फाल्स ही साबित हुई और लटक गयी

उफ! आत्मघाती 21वीं सदी

हर दौर वक्त की छाप लिए होता है। वह राहु-केतु-शनि की प्रवृत्तियों के अपने साये में जीव-जंतुओं का खेला बनाए होता है। तभी तो मौजूदा दौर विनाश के विषाणुओं, वायरस का है। मानो समय थक गया है। पृथ्वी छीज गई है। पिछली सदी के आखिर में व इक्कीसवीं सदी के आरंभ में उम्मीदों का उत्साह था। नई सहस्त्राब्दी, ग्लोबलाइज्‍ड जीवन, तकनीक-संचार-डिजिटल क्रांति की भविष्यगामी उमंगें थीं। मिलेनियम पीढ़ी, भावी पीढ़ियों का सुनहरा वक्त आता लगता था। इतिहास खत्म होने मतलब लड़ाई-झगड़े, युद्ध की समाप्ति की भविष्यवाणी थी। टाइम कैप्सूल के गड्ढों में अतीत दफन होता हुआ था। तभी अचानक 9/11 हुआ।

देश में क्या है शर्म? सभी है दोषी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ उसके दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि वे मणिपुर के वीडियो को लेकर बहुत परेशान हैं और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने आगे बढ़ कर कहा है कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई करेगा। लेकिन सवाल है कि दोषी कौन है? मणिपुर की इंफाल घाटी के मैती बहुल थौबल जिले की वह भीड़, जिसके सामने दो महिलाओं को निर्वस्त्र किया गया या वो लोग जिन लोगों ने महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाई या उनके साथ सामूहिक बलात्कार में शामिल हुए? क्या कांगपोक्पी जिले की पुलिस दोषी नहीं है, जिसने 18 मई को एफआईआर दर्ज किया और ठीक दो महीने बाद वीडियो वायरल होने तक कोई कार्रवाई नहीं की? क्या थौबल जिले की पुलिस के सिर यह अपराध नहीं आएगा, जिसकी आंखों के सामने कुकी-जोमी समुदाय के एक पूरे परिवार को उजाड़ दिया गया?

भाजपा की गठबंधन राजनीति के मायने

भारतीय जनता पार्टी ने एनडीए के 25 साल पूरे होने पर इसको पुनर्जीवित किया तो यह देश के राजनीतिक विमर्श का सबसे प्रमुख मुद्दा बन गया। बनना भी चाहिए क्योंकि पिछले नौ साल से भाजपा जिस तरह की एकाधिकारवादी राजनीति कर रही है उसमें उसका गठबंधन की ओर बढ़ना और प्रधानमंत्री का यह कहना कि उनका गठबंधन एक सुंदर इंद्रधनुष है, जिसमें कोई भी पार्टी छोटी या बड़ी नहीं है, बहुत सुखद संकेत है। कई लोग इसे सुखद संकेत नहीं मानेंगे क्योंकि गठबंधन की सरकारों के बारे में ऐसी धारणा बना दी गई है कि उनके होने से राजनीतिक व प्रशासनिक अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है। यह धारणा भी बनाई गई है कि केंद्र में मजबूत सरकार से न सिर्फ स्थिरता आती है, बल्कि बाह्य और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह एक गढ़ा हुआ विमर्श है, जिसे तथ्यों के आधार पर प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। हकीकत यह है कि इस देश में गठबंधन की सरकारों ने विकास के ज्यादा काम किए हैं

चुप रह जाने के भी कुछ फायदे हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी राजनीति में कई चीजें एक्स्ट्रीम वाली हैं। जैसे कई बार लगता है कि वे बहुत बोलते हैं। उनकी पार्टी की ओर से कहा भी जाता है कि अब जाकर भारत को बोलने वाला प्रधानमंत्री मिला है। तो दूसरी ओर कई बार वे पूरी तरह से चुप हो जाते हैं। एकदम ही नहीं बोलते हैं। कायदे से दोनों के बीच की स्थिति होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री हर मंच से लंबे लंबे भाषण देते हैं। सरकारी कार्यक्रम हो, संसद का मंच हो या चुनावी सभा हो हर जगह उनको बोलना पसंद है। भारत में एक प्रधानमंत्री हुए थे पीवी नरसिंह राव, जिनको मौनी बाबा कहा जाता था। वे एकदम नहीं बोलते थे। उन्होंने चुप रह जाने को एक रणनीतिक हथियार बना लिया था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई बार चुप रह जाना जवाब देने से बेहतर होता है।

मोदी हों या राहुल, सबका मक्का अमेरिका-लंदन!

यह सच्चाई है। तभी आजाद भारत की मनोदशा का यह नंबर एक छल है कि हम रमते हैं पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति में लेकिन तराना होता है हिंदी-चीनी भाई-भाई या रूस-भारत भाई-भाई। यों आजाद भारत का पूरा सफर दोहरे चरित्र व पाखंडों से भरा पड़ा है लेकिन भारत की विदेश नीति में जितना पाखंड, दिखावा और विश्वगुरू बनने की जुमलेबाजी हुई वह रिकार्ड है। मैंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले, शीतयु्द्ध के पीक वक्त में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लिखना शुरू किया था। तब से आज तक वैश्विक मामलों में भारत की विदेश नीति के दिखावे और हकीकत, झूठ और सत्य के ऐसे-ऐसे ढोंग देखे हैं, जिससे विशाल आबादी वाला भारत दुनिया की तो छोड़ें गली का चौधरी भी नही बन पाया।

क्या राजस्थान, मप्र, छतीसगढ़ में कांग्रेस जीतेगी?

सवाल पर जरा मई 2024 की प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी परीक्षा के संदर्भ में सोचें। तो जवाब है कतई नहीं। इन राज्यों में कांग्रेस को लोकसभा की एक सीट नहीं मिलनी है। मई 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी के लिए आखिरी, जीवन-मरण का, मरता क्या न करता के एक्सट्रीम दावों का है। तब भला दिसंबर के तीन विधानसभा चुनावों में वे कैसे इन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने देंगे? खासकर राजस्थान और छतीसगढ़ में, सत्ता में रहते हुए कांग्रेस का दुबारा जीतना! यों इन तीन राज्यों में भाजपा कुछ अहम चेंज करने वाली है। उसकी टाइमलाइन अनुसार सचिन पायलट का फैसला होने वाला है।

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