भाजपा को अपनी चुनौतियां पता हैं

कोई भी चुनाव आसान नहीं होता है और भारतीय लोकतंत्र की यह खूबी रही है कि जिस पार्टी या नेता ने आसान मान कर चुनाव लड़ा उसे हार का सामना करना पड़ा। भारत में चुनावों की एक खासियत यह भी रही है कि जिस समय कोई पार्टी जीत के अति आत्मविश्वास में रही उसी समय मतदाताओं ने उसको सबसे बड़ा झटका दिया

देश में क्या है शर्म? सभी है दोषी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ उसके दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि वे मणिपुर के वीडियो को लेकर बहुत परेशान हैं और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने आगे बढ़ कर कहा है कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई करेगा। लेकिन सवाल है कि दोषी कौन है? मणिपुर की इंफाल घाटी के मैती बहुल थौबल जिले की वह भीड़, जिसके सामने दो महिलाओं को निर्वस्त्र किया गया या वो लोग जिन लोगों ने महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाई या उनके साथ सामूहिक बलात्कार में शामिल हुए? क्या कांगपोक्पी जिले की पुलिस दोषी नहीं है, जिसने 18 मई को एफआईआर दर्ज किया और ठीक दो महीने बाद वीडियो वायरल होने तक कोई कार्रवाई नहीं की? क्या थौबल जिले की पुलिस के सिर यह अपराध नहीं आएगा, जिसकी आंखों के सामने कुकी-जोमी समुदाय के एक पूरे परिवार को उजाड़ दिया गया?

भाजपा की गठबंधन राजनीति के मायने

भारतीय जनता पार्टी ने एनडीए के 25 साल पूरे होने पर इसको पुनर्जीवित किया तो यह देश के राजनीतिक विमर्श का सबसे प्रमुख मुद्दा बन गया। बनना भी चाहिए क्योंकि पिछले नौ साल से भाजपा जिस तरह की एकाधिकारवादी राजनीति कर रही है उसमें उसका गठबंधन की ओर बढ़ना और प्रधानमंत्री का यह कहना कि उनका गठबंधन एक सुंदर इंद्रधनुष है, जिसमें कोई भी पार्टी छोटी या बड़ी नहीं है, बहुत सुखद संकेत है। कई लोग इसे सुखद संकेत नहीं मानेंगे क्योंकि गठबंधन की सरकारों के बारे में ऐसी धारणा बना दी गई है कि उनके होने से राजनीतिक व प्रशासनिक अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है। यह धारणा भी बनाई गई है कि केंद्र में मजबूत सरकार से न सिर्फ स्थिरता आती है, बल्कि बाह्य और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह एक गढ़ा हुआ विमर्श है, जिसे तथ्यों के आधार पर प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। हकीकत यह है कि इस देश में गठबंधन की सरकारों ने विकास के ज्यादा काम किए हैं

चुप रह जाने के भी कुछ फायदे हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी राजनीति में कई चीजें एक्स्ट्रीम वाली हैं। जैसे कई बार लगता है कि वे बहुत बोलते हैं। उनकी पार्टी की ओर से कहा भी जाता है कि अब जाकर भारत को बोलने वाला प्रधानमंत्री मिला है। तो दूसरी ओर कई बार वे पूरी तरह से चुप हो जाते हैं। एकदम ही नहीं बोलते हैं। कायदे से दोनों के बीच की स्थिति होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री हर मंच से लंबे लंबे भाषण देते हैं। सरकारी कार्यक्रम हो, संसद का मंच हो या चुनावी सभा हो हर जगह उनको बोलना पसंद है। भारत में एक प्रधानमंत्री हुए थे पीवी नरसिंह राव, जिनको मौनी बाबा कहा जाता था। वे एकदम नहीं बोलते थे। उन्होंने चुप रह जाने को एक रणनीतिक हथियार बना लिया था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई बार चुप रह जाना जवाब देने से बेहतर होता है।

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