हर दौर वक्त की छाप लिए होता है। वह राहु-केतु-शनि की प्रवृत्तियों के अपने साये में जीव-जंतुओं का खेला बनाए होता है। तभी तो मौजूदा दौर विनाश के विषाणुओं, वायरस का है। मानो समय थक गया है। पृथ्वी छीज गई है। पिछली सदी के आखिर में व इक्कीसवीं सदी के आरंभ में उम्मीदों का उत्साह था। नई सहस्त्राब्दी, ग्लोबलाइज्ड जीवन, तकनीक-संचार-डिजिटल क्रांति की भविष्यगामी उमंगें थीं। मिलेनियम पीढ़ी, भावी पीढ़ियों का सुनहरा वक्त आता लगता था। इतिहास खत्म होने मतलब लड़ाई-झगड़े, युद्ध की समाप्ति की भविष्यवाणी थी। टाइम कैप्सूल के गड्ढों में अतीत दफन होता हुआ था। तभी अचानक 9/11 हुआ।
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